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10 सितंबर को अष्टमी तिथि के श्राद्ध के अलावा महालक्ष्मी व्रत भी

मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, 98156 19620
10 सितंबर को अष्टमी तिथि के श्राद्ध के अलावा महालक्ष्मी व्रत रखने की भी परंपरा है। इसे संतान की दीर्घायु के लिए माताएं रखती हैं।सप्तमी तिथि वीरवार की प्रातः 2 बज कर 06 मिनट पर समाप्त हो जाएगी और अष्टमी आरंभ हो जाएगी। गुरुवार का पूरा दिन श्री महालक्ष्मी व्रत रखा जा सकता है। इसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। इस दिन पितृपक्ष होने के बावजूद सोना, वाहन , गृह संबंधी तथा लक्जरी आयटम्ज खरीदी जा सकती हैं ।
इस व्रत को रखने से मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है और जीवन में धन, यश और सफलता मिलती है और दरिद्रता दूर होती है. इस दिन गज लक्ष्मी यानी हाथी पर बैठी महालक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए.
श्राद्ध पक्ष में शुभ कार्य वर्जित होते हैं. इस दौरान लोग नई वस्तुएं, नए परिधान नहीं खरीदते और ना ही पहनते हैं लेकिन इस पक्ष में आने वाली अष्टमी तिथि को बेहद शुभ माना जाता है. इसे गजलक्ष्मी व्रत, महालक्ष्मी व्रत, हाथी पूजा भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन खरीदा सोना आठ गुना बढ़ता है. इस दिन हाथी पर सवार मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है.
सौभाग्यवती महिलाएं सुबह नित्य कर्म के पश्चात लाल वस्त्र धारण कर लक्ष्मी जी के चित्र के सम्मुख बैठ कर ल्क्ष्मी जी की आराधना करें और उन्हें कष्टमुक्त दीर्धायु प्रदान करने की याचना करें।
इस साधारण परंतु महाशक्तिशाली मंत्र जाप की एक माला करने से दरिद्रता का नाश होकर संपत्ति की प्राप्ति होती है। निर्धनता का सदा के लिए निवारण हो जाता है।
ओम् श्री महालक्ष्म्यै नमः
महालक्ष्मी व्रत एवं पूजा विधि
महालक्ष्मी व्रत में मां लक्ष्मी के आठों रूप- श्रीधन लक्ष्मी, श्रीगज लक्ष्मी, श्रीवीर लक्ष्मी, श्री ऐश्वर्य लक्ष्मी मां, श्री विजय लक्ष्मी मां, श्री आदि लक्ष्मी मां, श्री धान्य लक्ष्मी मां और श्री संतान लक्ष्मी मां की पूजा करनी चाहिए.
आज के दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर माता लक्ष्मी की मिट्टी की मूर्ति पूजा स्थान पर स्थापित करें। मां लक्ष्मी के 8 रूपों की मंत्रों के साथ कुंकुम, चावल और फूल चढ़ाते हुए पूजा करें.मां लक्ष्मी को लाल, गुलाबी या फिर पीले रंग का रेशमी वस्त्र पहनाएं। फिर उनको चन्दन, लाल सूत, सुपारी, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, नारियल, फल मिठाई आदि अर्पित करें। पूजा में महालक्ष्मी को सफेद कमल या कोई भी कमल का पुष्प, दूर्वा और कमलगट्टा भी चढ़ाएं। इसके बाद माता लक्ष्मी को किशमिश या सफेद बर्फी का भोग लगाएं। इसके बाद माता महालक्ष्मी की आरती करें। पूजा के दौरान आपको महालक्ष्मी मंत्र या बीज मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।