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21 जून को सूर्य का लॉकडाउन ? क्या ग्रहण बढ़ाएगा धरती की धढ़कन ?




चंडीगढ़ (अदिति) - प्रसिद्ध ज्योतिर्विद्, मदन गुप्ता सपाटू ने कहा है कि आज से 5000 साल पहले जब महाभारत के युद्ध का 14 वां दिन था, कुरुक्षेत्र के अलावा कई अन्य देशों में पूर्ण सूर्य ग्रहण लगा था और दिन में ही अंधेरा छा गया था। इस दिन अर्जुन, अभिमन्यु के वध का बदला लेने की प्रतिज्ञा करते हैं। कोैरव जयद्रथ को छिपा देते हैं। पूर्ण ग्रहण के कारण अंधेरा छा जाता है। रात्रि के कारण युद्ध बंद हो जाता है जो वास्तव में रात नहीं थी । परंतु जैसे ही ग्रहण समाप्त होता है, उजाला होता है, श्री कृष्ण अर्जुन से जयद्रथ का वध करवा देते हैं।वह भारत का महा युद्ध था, आज विश्व पटल पर ,विश्व युद्ध जैसा वातावरण चल रहा है। क्या 21 जून का सूर्य ग्रहण धरती को कंपाएगा, धमकाएगा, हिलाएगा,डराएगा या इससे भी कुछ अधिक कर सकता है ? इस बार सूर्य ग्रहण के साथ एक और संयोग है। यह एक दुर्लभ खगोलीय घटना का निर्माण कर रहा है। यह ग्रहण ऐसे दिन होने जा रहा है जब उसकी किरणें कर्क रेखा पर सीधी पडेंगी। इस दिन उत्तरी गोलार्ध में सबसे बड़ा दिन और सबसे छोटी रात होती है। साल का पहला सूर्य ग्रहण है जो आषाढ़ महीने की अमावस्या को रहेगा। ये ग्रहण भारत में दिखाई देगा। इसलिए इसका बड़ा प्रभाव देखने को मिलेगा। कंकण आकृति ग्रहण होने के साथ ही यह ग्रहण रविवार को होने से और भी प्रभावी हो गया है। यह बहुत दुर्लभ है। जिस तरह का यह ग्रहण है वैसा 900 साल बाद घटित होगा। 21 जून को लगने वाला सूर्य ग्रहण मिथुन राशि में लगेगा।

उनका कहना है कि एक साथ बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु यह छह ग्रह 21 जून 2020 को वक्री रहेंगे। इन छह ग्रह का वक्री होना यानी एक बड़ा तहलका मचाने वाला है।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुभ नहीं माना जा रहा है। हालांकि कंकणाकृति होने का अर्थ यह है कि इससे कोरोना का रोग नियंत्रण में आना शुरू हो जाएगा, लेकिन अन्‍य मामलों में यह ग्रहण अनिष्‍टकारी प्रतीत हो रहा है।

सूर्य ग्रहण का समय

ग्रहण प्रारम्भ काल: 10:20

परमग्रास:12:02

ग्रहण समाप्ति काल:13:49

खण्डग्रास की अवधि: 03 घण्टे 28 मिनट्स 36 सेकण्ड्स

अधिकतम परिमाण: 0.95

सूर्य ग्रहण का सूतक काल

सूतक प्रारम्भ: 21:52, जून 20

सूतक समाप्त: 13:49

इसे धार्मिक दृष्टि से महत्‍वपूर्ण माना जा रहा है क्‍योंकि यह चंद्र ग्रहण के मात्र 16 दिन बाद लग रहा है . आगामी 5 जुलाई को एक बार फिर से चंद्र ग्रहण लगेगा। भारतीय समय अनुसार सूर्य ग्रहण का आरंभ 21 जून की सुबह 10 बजकर 42 मिनट पर होगा। यह वलयाकार सूर्य ग्रहण रहेगा। इसका सूतक 20 जून की रात 10 बजे से आरंभ हो जाएगा। ग्रहण का मध्य 12 बजकर 24 मिनट दोपहर पर होगा। इसका मोक्ष दोपहर 2 बजकर 7 मिनट पर होगा। इस ग्रहण की कुल अवधि 3 घंटे 25 मिनट की रहेगी। यह अधिकांश भू-मंडल पर दिखाई देगा। इसके बाद मौजूदा वर्ष के अंत में एक और सूर्य ग्रहण होगा।

ग्रहण के दौरान सूर्य वलयाकार की स्थिति में केवल 30 सेकंड की अवधि तक ही रहेगा। इसके चलते सौर वैज्ञानिक इसे दुर्लभ बता रहे हैं। ग्रहण के दौरान सूर्य किसी छल्ले की भांति नजर आएगा। इस बार के सूर्यग्रहण में जो स्थिति बनने जा रही है, उसी ने इसे दुर्लभ ग्रहणों में शामिल किया है। सूर्य व चंद्रमा के बीच की दूरी ही इसकी खास वजह है।

ग्रहण के दौरान सूर्य की पृथ्वी से 15 करोड़ 2 लाख 35 हज़ार 882 किमी की दूरी रह जाएगी। इस दौरान चांद भी 3 लाख 91 हज़ार 482 किमी की दूरी से अपने पथ से गुजर रहा होगा। अगर चांद इस दौरान पृथ्‍वी के और पास होता तो यह ग्रहण एक पूर्ण सूर्यग्रहण बन जाता। इसी तरह अगर सूर्य थोड़ा और पास होता तो ग्रहण का नज़ारा बदल जाता। लेकिन अब यह ग्रहण वलयाकार होगा, यानी चांद पूरी तरह से सूर्य को नही ढंक पाएगा। करीब 30 सेकंड के लिए ही चांद सूर्य के बड़े भाग को कवर करेगा। अंत में सूर्य का आखिरी हिस्सा एक चमकती हुई रिंग के समान नजर आएगा। 30 सेकंड के बाद यह ग्रहण समाप्‍त हो जाएगा।

राजस्थान में दो जगहों पर सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य का सिर्फ एक प्रतिशत भाग ही दिखाई देगा। इसकी आकृति कंगन जैसी दिखेगी। कंकणाकृति के ग्रहण के समय सूर्य किसी कंगन की भांति नज़र आता है। इसलिए इसे कंकणाकृति ग्रहण कहा जाता है। पिछली बार वर्ष 1995 के पूर्ण ग्रहण के समय ऐसा ही हुआ था।

21 जून को सूर्य के वलय पर चंद्रमा का पूरा आकार नजर आएगा। सूर्य का केन्द्र का भाग पूरा काला नजर आएगा, जबकि किनारों पर चमक रहेगी। इस तरह के सूर्य ग्रहण को पूरे विश्व में कहीं-कहीं ही देखा जा सकता है और अधिकांश जगह लोगों को आंशिक ग्रहण ही नजर आता है। जब भी सूर्य ग्रहण होता है, दो चंद्र ग्रहण के साथ होता है। इसमें या तो दोनों चंद्रग्रहण उससे पहले होते हैं अथवा एक चंद्रग्रहण सूर्य ग्रहण से पहले एवं दूसरा सूर्यग्रहण के बाद दिखाई देता है। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है।

ग्रहण शुभ फल लेकर नहीं आते हैं. ये भविष्य में आने वाली परेशानियों के बारे में भी इंगित करते हैं. देशकाल की बात करें तो एक माह में दो ग्रहण प्राकृतिक आपदाओं का भी कारण बनते हैं. इसके अतिरिक्त सीमा विवाद, तनाव जैसी स्थिति की तरफ भी इशारा करते हैं. दो ग्रहण कई क्षेत्रों में हानि का सूचक भी होता है. इसलिए इसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए भगवान शिव और भगवान विष्णु की उपासना करना चाहि।

सूतक का समय

सूतक 20 जून को रात 10:20 से ही शुरू हो जाएगा। सूतक काल में बालक, वृद्ध एवं रोगी को छोड़कर अन्य किसी को भोजन नहीं करना चाहिए। इस दौरान खाद्य पदार्थो में तुलसी दल या कुशा रखनी चाहिए। गर्भवती महिलाओं को खासतौर से सावधानी रखनी चाहिए। ग्रहण काल में सोना और भोजन नहीं करना चाहिए। चाकू, छुरी से सब्जी,फल आदि काटना भी निषिद्ध माना गया है।

ग्रहण का फल

मेष, सिंह, कन्या और मकर राशि वालों पर ग्रहण अशुभ प्रभाव नहीं रहेगा। जबकि वृष, मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक, धनु, कुंभ और मीन राशि वाले लोगों को सावधान रहना होगा। इसमें वृश्चिक राशि वालों को विशेष ध्यान रखना होगा। इस सूर्य ग्रहण के दौरान स्नान, दान और मंत्र जाप करना विशेष फलदायी रहेगा।

जरुरतमंद लोगों को करें दान और शुभ काम करने से बचें

·सूतक काल में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है। ग्रंथों के अनुसार सूतक काल में पूजा पाठ और देवी देवताओं की मूर्तियों को भी छूने की मनाही है। इस दौरान कोई शुभ काम शुरू करना अच्छा नहीं माना जाता। सूर्य ग्रहण के अशुभ असर से बचने के लिए प्रभावित राशि वाले लोगों को ग्रहण काल के दौरान महामृत्युंजय मंत्र के जप करना चाहिए या सुन भी सकते हैं। इसके अलावा जरुरतमंद लोगों को अनाज दान करें। ग्रहण से पहले तोड़कर रखा हुआ तुलसी पत्र ग्रहण काल के दौरान खाने से अशुभ असर नहीं होता।

सूर्य ग्रहण चूंकि गर्मी के महीने में लग रहा और चंद्रमा अंक 2 का प्रतीक है जो जल, भावना, संवेदना और अवसाद का भी प्रतीक है इन सबको को बढ़ाएगा। यह सूर्य ग्रहण निश्चित रूप से जरुरत से ज्यादा पानी लाएगा। भारत में कई जगह बाढ़ की स्थिति बनेगी। प्राकृतिक आपदा में भूकंप आने की भी प्रबल सम्भावना रहेगी। जो वैश्विक महामारी से समाज गुजर रहा इसका कई तरह से प्रभाव आने वाले समय में बना रहेगा। लोगों में आत्म विश्वासकी कमी होगी। कुछ देशों में युद्ध की स्थिति बनेगी। अग्नि और जल का असंतुलन होगा।

क्या न करें?

ग्रहण काल में किसी भी नए कार्य का शुभारंभ न करे। सूतक के दौरान भोजन बनाना और भोजन करना वर्जित माना जाता है। देवी-देवताओं की प्रतिमा और तुलसी के पौधे को स्पर्श नहीं करना चाहिए। सूर्य ग्रहण के दौरान फूल, पत्ते, लकड़ी आदि नहीं तोड़ने चाहिए।

इस दिन न बाल धोने चाहिए ना ही वस्त्र.

ग्रहण के समय सोना, शौच, खाना, पीना, किसी भी तरह के वस्तु की खरीदारी से बचना चाहिए.

सूर्यग्रहण में बाल अथवा दाढ़ी नहीं कटवानी चाहिए, ना ही बालों अथवा हाथों में मेहंदी लगवानी चाहिए.

सर्यग्रहण के दरम्यान उधार लेन-देन से बचना चाहिए. उधार लेने से दरिद्रता आती है और उधार देने से लक्ष्मी नाराज होती हैं. यह भी पढ़ें: इस दिन लगेगा 2019 का पहला सूर्य ग्रहण, आपकी राशि पर भी पड़ेगा ये प्रभाव

क्या करें?

ग्रहण काल के समय भगवान का ध्यान करना चाहिए.

भगवान के ध्यान के साथ ही मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए.

ग्रहण समाप्ति के बाद घर में गंगाजल का छिड़काव करना चाहिए.

सूतक काल के पहले तैयार भोजन को खाने से पहले उसमें तुलसी के पत्ते डालकर शुद्ध करें.

सूर्य ग्रहण लगने और खत्म होने के दौरान सूर्य मन्त्र ‘ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ’ के अलावा ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का धीमे-धीमे मगर शुद्ध जाप करें.

संयम के साथ जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है. ग्रहण काल के दौरान कमाया गया पुण्य अक्षय होता है. इसका पुण्य प्रताप अवश्य प्राप्त होता है.

सूर्य का लॉकडाउन ? क्या कहते हैं वैज्ञानिक ?

सूरज के लॉकडाउन में चले जाने के कारण दुनियाभर के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है। इस दौरान सूरज के सतह पर सौर विकिरण में आश्चर्यजनक रूप से कमी आई है। वैज्ञानिकों ने इसे सोलर मिनिमम नाम दिया है। इसके प्रभाव से धरती पर भूकंप, ठंड और सूखे की आशंका बढ़ गई है।

अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने सूर्य के सतह पर होने वाली घटनाओं में अप्रत्याशित रूप से कमी दर्ज की है। वैज्ञानिक भाषा में इसे सोलर मिनिमम का नाम दिया गया है। इसके अलावा सूर्य का मैग्नेटिक फील्ड भी पहले से कमजोर हुआ है। इसके कारण ही सूर्य के सतह पर कास्मिक रेज होती है और गर्म हवाएं चलती हैं। सूरज की सतह पर सोलर स्पॉट में वृद्धि देखी जा रही है।

माना जा रहा है कि सोलर मिनिमम का असर धरती पर भी देखने को मिल सकता है। वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि इससे धरती के मौसम पर गंभीर असर पड़ सकता है। सूरज की किरणों में कमी होने से कई तरह के परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं। डाल्टन मिनिमम के कारण 1790 से 1830 के दौरान धरती पर भारी तबाही देखने को मिली थी। इस कारण भयंकर ठंड से यूरोप में कई नदियां जम गईं थीं। किसानों की फसलें खराब हो गई थी। जबकि साल 1816 की जुलाई में यूरोप में भारी बर्फबारी देखने को मिली थी। धरती के कई हिस्सों में भूकंप-सूखा जैसी स्थिति भी बनी थी।

वैज्ञानिकों ने कहा है कि इस बार सोलर मिनिमम पहले की अपेक्षा ज्यादा प्रभावकारी होगा। सोलर स्पॉट के बढने से सूरज की मैग्नेटिक फील्ड कमजोर पड़ जाएंगी जिससे कास्मिर रेज में बढोत्तरी होगी। ये कास्मिक रेज अंतरिक्ष में मौजूद एक्ट्रोनॉट्स के अलावा धरती के वायुमंडल के लिए भी खतरनाक होगी।

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