मदन गुप्ता सपाटू , ज्योतिर्विद्
अक्सर 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक की अवधि को खरमास का नाम देकर ,इसमें मांगलिक कार्य करने वर्जित माने जाते हैं। इस बार तो 10 दिसंबर से ही विवाहों के मुहूर्त समाप्त हो गए और अब 24 अपै्रल से ही आरभ होंगे। वैदिक ज्योतिष तथा भारतीय परंपराओं का सदा वैज्ञानिक आधार रहा है। ज्योतिष खगोल विज्ञान का फलादेश है।
वर्ष में सूर्य की 12 संक्रांतियां होती है। इन बारह राशियों पर सूर्य की स्थिति रहती है। एक मास तक .एक राशि पर रहने के बाद सूर्य दूसरे राशि में प्रवेश करता है। इसमे दो संक्रांतियों पर सूर्य बृहस्पति की राशि पर रहता है। ये है धनु और मीन राशियां। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य की स्थिति बृहस्पति की राशि पर होती है तो बृहस्पति का तेज समाप्त हो जाता है। मांगलिक कार्यों के लिए तीन ग्रहों के बल की आवश्यकता है। ये हैं सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति। इनमें किसी भी ग्रह के बल में न्यूनता होने से मांगलिक कार्य अवरूद्ध हो जाते हैं। खरमास के महीने में बृहस्पति के बलहीन होने से समस्त शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। इसी प्रकार जब महीने मे सूर्य चंद्रमा के अत्यन्त सन्निकट आ जाता है तो उस समय भी शुभ मुहूर्त का अभाव रहता है। यह स्थिति प्रत्येक महीने मे अमावस्या के आसपास देखा जाता है। इसे मासान्त दोष की संज्ञा से विभूषित किया गया है।
मार्गशीर्ष को अर्कग्रहण भी कहते हैं. अर्कग्रहण का अपभ्रंश अर्गहण है और अर्कग्रहण और पौष का संगम है खरमास. जब सूर्य धनु राशि में आ जाता है तो खरमास शुरू हो जाता है. दक्षिणायन का आखिरी महीना ही खरमास होता है. मकर संक्रांति से देवताओं का दिन शुरू हो जाता है. इसी दिन खरमास समाप्त हो जाता है.
सूर्य ,16 दिसंबर 2020 को वृश्चिक राशि की यात्रा समाप्त करके धनु राशि में आ गए हैं और अब खरमास का समापन 15 जनवरी 2021 को होगा. पौराणिक मान्यता के अनुसार खरमास में किसी भी तरह के मांगलिक और शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. सूर्य के कारण बृहस्पति निस्तेज हो जाते हैं. इसलिए खरमास में सभी शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश आदि नहीं किए जाते हैं, क्योंकि शुभ कार्यो के लिए बृहस्पति का साक्षी होना आवश्यक है. क्योंकि धनु बृहस्पति की आग्नेय राशि है और इसमें सूर्य का प्रवेश विचित्र, अप्रिय और अप्रत्याशित परिणाम का सबब बनता है. मनुष्य ही नहीं, हर प्राणी की आंतरिक स्थिरता नष्ट होती है और चंचलता घेर लेती है. अंतर्मन में नकरात्मकता प्रवेश करने लगती है. इस मास में किसी नए कार्य की शुरुआत करना उत्तम नहीं होता है. सगाई, गृह निर्माण प्रारंभ, नवीन गृह प्रवेश आ दि भी नहीं किए जाते हैं.
धनु राशि की यात्रा और पौष मास के संयोग से देवगुरु के स्वभाव में अजीब-सी उग्रता के कारण यह माह नकारात्मक कर्मों को प्रोत्साहित करता है, इसीलिए इसे कहीं-कहीं 'दुष्ट माह' भी कहा गया है. बृहस्पति के आचरण में उग्रता, अस्थिरता, क्रूरता और निकृष्टता के कारण इस मास के मध्य शादी-विवाह, गृह निर्माण, गृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण जैसे मांगलिक कार्य अमांगलिक सिद्ध हो सकते हैं, इसलिए शास्त्रों ने इस माह में इनका निषेध किया है.
ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, सूर्य अकेले ही सात ग्रहों के दुष्प्रभावों को नष्ट करने का सामर्थ्य रखते हैं. दक्षिणायन होने पर सूर्य के आंतरिक बल में कमी परिलक्षित होती है. अतएव ढेरों अवांछित झमेलों का सूत्रपात होता है, पर उत्तरायण होते ही सूर्य नारायण समस्त ग्रहों के तमाम दोषों का उन्मूलन कर देते हैं. इसलिए दैविक, दैहिक और भौतिक कष्टों से मुक्ति के लिए भगवान सूर्य की उपासना असरदार मानी गई है. ऐश्वर्य और सम्मान के अभिलाषियों को खरमास में ब्रह्म मुहूर्त में सूर्य की आराधना करनी चाहिए.(
कुंडली में बृहस्पति धनु राशि में हो तो इस इस माह में शुभ कार्य किए जा सकते हैं.नियमित किए जाने वाले शुभ कार्य या धार्मिक अनुष्ठान में खरमास का कोई बंधन नहीं होता. अत: इस प्रकार के कार्य आप इस माह में कर सकते हैं.सीमान्त, जातकर्म और अन्नप्राशन आदि कर्म पहले से तय होने पर इस अवधि में किए जा सकते हैं. किसी का श्राद्ध करने वाले हैं, तो इसमें भी खरमास का कोई बंधन नहीं होता.कोर्ट मैरिज में किसी प्रकार से खरमास बाधक नहीं बनता. अतः कोर्ट मैरिज कर सकते हैं.
अपवाद स्वरुप आप भूमि, वाहन, प्रापर्टी,वस्त्र आदि सब अपने विवेकानुसार खरीद सकते हैं।एक मास तक जीवन की दिनचर्या बंद नहीं की जा सकती। यदि कार या कोई अन्य वाहन खरीदना चाहते हैं तो 18, 20, 27 ,30 दिसंबर के अलावा नए साल या 6 तथा 8 जनवरी को भी घर ला सकते हैं । मकान , फलैट, जमीन आदि के क्रय का काम इस वर्ष के अंतिम दिन और नव वर्ष पर 3, 4 ,8 , 9, 12 तारीखों पर भी किया जा सकता है। बिजनेस में कोई प्रचार, प्रसार या नया एंटरप्राइज 17, 24 तथा 27 दिसंबर को भी किया जा सकता है।
क्या करें ?
खरमास में सूर्योदय से पहले उठना चाहिए. स्नान आदि करके भगवान का स्मरण करना चाहिए.ब्राह्मण, गुरु, गाय एवं साधु-सन्यांसियों की सेवा करनी चाहिए।सूर्यदेव की उपासना करनी चाहिए।भगवान विष्णु की पूजा विशेष लाभदायक मानी गई है.भगवान श्रीकृष्ण की उपासना और सूर्य देव की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता पवित्र नदी में नित्य स्नान करने से कई प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है.खरमास में धार्मिक यात्रा करने को श्रेष्ठ माना गया है.
इस अवधि में 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:' का जाप जरूर करना चाहिए. इस काल में पीपल का पूजन भी करना चाहिए. जिन लोगों को किसी प्रकार की बाधा का सामना करना पड़ रहा है उन्हें खरमास की नवमी तिथि को कन्याओं को भोजन करवाकर उपहार देना चाहिए.