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दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इटली मुहिम में भारतीय सैनिकों के कीमती योगदान पर रौशनी डाली


चंडीगढ़ (गुरप्रीत) चौथे मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इटली मुहिम में भारतीय सैनिकों द्वारा दिए गए बलिदानों और दिखाए गए असाधारण हौसले और बहादुरी की कहानियों पर रौशनी डाली गई। आज यहाँ ‘‘दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इटली में भारतीय सेना’’ विषय पर ऑनलाइन सैशन करवाया गया जिसमें प्रसिद्ध फ़ौजी इतिहासकार, डॉ. राबर्ट लायमन, डॉ. अलेग्जेंडर विल्सन, प्रोफ़ैसर नायल बार, श्री गैरेथ डेविस और कर्नल (सेवामुक्त) पैट्रिक मरसर ने हिस्सा लिया।

विचार-विमर्श का संचालन करते हुए बिर्टिश फ़ौजी इतिहासकार डॉ. राबर्ट लायमन, जिन्होंने दूसरे विश्व युद्ध पर कई प्रसिद्ध किताबें लिखी हैं, ने कहा कि भारतीय सैनिकों के योगदान और असाधारण बहादुरी को विश्व इतिहास के सुनहरी अक्षरों में उकेरा गया है, जिसको हमेशा याद रखा जायेगा।

डॉ. अलेग्जेंडर विल्सन जो लंदन के किंग्ज कॉलेज में डिफेंस स्टडीज़ विभाग में सैन्य इतिहास पढ़ाते हैं, ने ब्रिटिश फ़ौज में भारतीय सैनिकों की महत्ता के साथ-साथ रणनीतक पैंतरों और युद्ध के दौरान सहयोगी बलों में आपसी तालमेल पर रौशनी डाली। किंग्ज कॉलेज लंदन में सैन्य इतिहास के प्रोफ़ैसर, नायल बार ने कहा कि भारतीय फ़ौज सबसे बड़ी स्वैच्छिक सेना थी, जिसने इटली में क्षेत्रीय और मौसमी हालातों के मुकाबले के साथ साथ जर्मन जैसे एक ताकतवर विरोधी का भी डटकर सामना किया। भारतीय सेना ने 1943 से 1945 तक एक साहसिक लड़ाई लड़ी जिस दौरान 5,782 फौजियों ने शहादत का जाम पिया। उन्होंने कहा कि भारतीय फ़ौज की बहादुरी और बलिदान की कहानी आज भी इटली के शहरों और गाँवों में सुनाई जाती है।

इटली में भारतीय सैनिकों की तरफ से लड़ी गई लड़ाई को याद करते हुये युद्ध के विश्लेषक श्री गैरेथ डेविस और कर्नल (सेवामुक्त) पैट्रिक मरसर जो फ़ौजी इतिहासकार, बी.बी.सी के पत्रकार और 2001 से 2014 तक निवारक से एम.पी. भी रहे ने कहा कि चौथी, आठवीं और दसवीं इंडियन इनफैंटरी डिवीजऩ ने मोंटे केसीनो पर कब्ज़ा करने के लिए लड़ी जंग और गोथिक लाईनज़ की मुहिम में अहम भूमिका निभाई थी। यह इनफैंटरी डिवीजनें 43वीं इंडिपैंडेंट गुरखा इनफैंटरी ब्रिगेड के साथ मिल कर बहुत बहादुरी से लड़ी। इटली मुहिम में भारतीय सैनिकों का योगदान से हर कोई अवगत है। तकरीबन 50,000 भारतीय सैनिकों, जिनमें से ज़्यादातर की उम्र 19 से 22 साल के दरमियान थी, ‘इटली की आज़ादी की लड़ाई ’ में बहादुरी से लड़े।

मोंटे केसीनो और सैंगरो नदी की लड़ाई और गोथिक लाईनज़ की लड़ाई में भारतीय फौजियों ने बहादुरी के जौहर दिखाऐ। उन्होंने आगे कहा कि भारतीय सैनिकों ने फासीवादी ताकतों के विरुद्ध इटली की लड़ाई लड़ते हुये अपना बलिदान दिया।

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