‘‘परमात्मा के प्रति निःस्वार्थ प्रेम ही सच्ची भक्ति कहलाती है। और ऐसी ही निष्काम प्रेम की भावना संतों की होती है।’’ उक्त उद्गार निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने 75वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के मुख्य सत्र में देश विदेशों से लाखों की संख्या में आये हुए विशाल मानव परिवार को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। चंडीगढ़ के संयोजक नवनीत पाठक जी ने बताया कि चंडीगढ़ से हजारो श्रद्धालु इस समागम में पहुंचे है ।सतगुरु माता जी ने कहा कि भक्त हर किसी को ईश्वर का ही रूप समझकर सभी से प्रेमपूर्वक व्यवहार करता है और उसका उसमे कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं होता। ऐसे भक्तों की भक्ति में फिर किसी प्रकार के डर का भाव नहीं रहता। प्रेम से किए गए हर कार्य का आधार केवल प्रेम ही होता है जिसकी प्रेरणा प्रेम ही होती है। समर्पित भाव से की जाने वाली सेवा सदैव परोपकार के लिए ही होती है। वहीं दूसरी ओर संसार में यदि देखा जाए तो जो प्रेम दर्शाया जाता है उसमें भी प्रायः कोई न कोई निजी स्वार्थ छिपा होता है। सत्गुरु माता जी ने आगे प्रतिपादन किया कि जिस प्रकार एक छोटे से बीज में घना छायादार वृक्ष बनने की क्षमता होती है उसी प्रकार से हर मनुष्य परमात्मा की अंश होने के नाते परमात्मा स्वरूप बनने की क्षमता रखता है। बीज जब धरती से अंकुरित होकर प्रफुल्लित होता है तब वह एक वृक्ष का रूप लेकर अपने सारे कार्य अच्छे से निभाता है। इसी प्रकार ब्रह्मज्ञान द्वारा मनुष्य जब परमात्मा के साथ इकमिक होकर उसके रंग में रंग जाता है तब स्वतः ही वह मानवीय गुणों से युक्त होकर सच्चा मानव बन जाता है। फिर उसके जीवन में रूहानियत और इन्सानियत का संगम देखने को मिलता है। इसके विपरीत जो मनुष्य इस सच्चाई से वंचित रहता है उसका सही रूप में विकास नहीं हो पाता। संत महात्मा ऐसे मनुष्य को जागृति देकर परमात्मा के साथ जोड़ने का कार्य करते हैं जिससे उनका जीवन भी मानवीयता के गुणों से युक्त हो जाए।
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