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पुत्र की सुरक्षा तथा दीर्घायु के लिए रखें श्री गणेश संकष्ट चतुर्थी व्रत 21 जनवरी को


मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिषाचार्य, 098156-19620

पुत्र की सुरक्षा तथा दीर्घायु की कामना से श्री गणेश संकट चौथ का पर्व माघ माह की कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन गणेश जी का पूजन किया जाता है। इस व्रत से संकट व दुख दूर रहते हैं और इच्छाएं व मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। महिलाएं निर्जल व्रत रखकर सायंकाल फलाहार लेती हैं और दूसरे दिन प्रातः सकठ माता पर चढ़ाए गए पकवानों को प्रसाद के रुप में ग्रहण करती हैं और वितरित करती हैं। तिल को भून कर गुड़ के साथ कूट कर पहाड़ बनाया जाता है। पूजा के बाद सब कथा सुनते हैं।

चंद्र दर्शन का समय

- 21जनवरी,शुकवार की रात्रि चंद्रोदय 09 बजकर 05 मिनट पर पर होगा। इससे पूर्व चतुर्थी तिथि प्रातः 8ः 50 पर आरंभ हो जाएगी तथा अगले दिन शनिवार को प्रातः 9ः15 तक रहेगी। अतः व्रत शुक्रवार को ही रख जाएगा।

शुभ योग- इस दिन सौभगय योग भी बन रहा है जो दोपहर 3 बजे त रहेगा। इसके बाद शेभन योगशुरु हो जाएगा। कूल मिला कर इस दिन कोई भी मांगलिक या शुभ कार्य आरंभ किया जा सकता है।

पूजा विधि-

इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि करें।

उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

एक चौकी लें उसे गंगाजल से उसे शुद्ध करें।

चौकी पर साफ पीला कपड़ा बिछाएं।

चौकी पर गणेश जी की मूर्ति को विराजमान करें।

भगवान गणपति के सामने धूप-दीप प्रज्वलित करें।

उसके बाद तिलक करें।

भगवान गणेश को पीले-फूल की माला अर्पित करें।

भगवान गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें।

गणेश जी को बेसन के लड्डू का भोग लगाएं।

गणेश जी की आरती करें।

शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत को पूरा करें।

संकल्प के लिए हाथ में तिल तथा जल लेकर यह मंत्र बोलें- गणपति प्रीतये संकष्ट चतुर्थी व्रत करिश्ये । चंद्रोदय पर गणेश जी की प्रतिमा पर गुड़ तिल के लडडुओं का भोग लगाएं व चंद्र का पूजन करें। ओम् सोम सोमाय नमः मंत्र से चंद्र को अर्ध्य दें। इस व्रत से संकट दूर होते हैं।

शिव कथा

शिव कथाओं के अनुसार पार्वती के उबटन से बने गणेश जी घर पर पहरा दे रहे थे. उसी समय शिवजी वहां पधारे, पार्वती स्नानागार में थीं, शिव जी को गणेश जी ने घर में प्रवेश से रोका, इस पर भोलेनाथ और गणेश जी में भयंकर युद्ध हुआ. क्रोध में शिवजी ने त्रिशूल से बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया. गणेश की चीत्कार से पार्वती बाहर आईं और सारा दृश्य देखकर दुःखी हो गईं. शिव जी से पुत्र को जीवित करने का आग्रह करने लगीं. इस पर नंदी ने एक दूसरे उलट दिशा में सो रहे हथिनी के शिशु के सिर को लाकर शिवजी को दिया. हाथी के शिशु के सर को गणेश जी के धड़ से लगाकर शिवजी ने उन्हें जीवित किया.

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