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हरियाणा ने बल का प्रयोग करके किसानों के संवैधानिक हक पर हमला किया -कैप्टन अमरिन्दर सिंह


चंडीगढ़ (गुरप्रीत) : दिल्ली की तरफ कूच कर रहे प्रदर्शनकारी किसानों को रोकने की बेकार कोशिश करते हुए हरियाणा की तरफ से क्रूर बल का प्रयोग करने की कड़ी निंदा करते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने इस कदम को किसानों के संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला करार दिया है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने दिल्ली सरकार को खेती कानूनों के मुद्दे पर अपनी चिंताएं ज़ाहिर करने के लिए शांतमयी ढंग से बैठने के लिए किसानों के लिए जगह मुकर्रर करने की अपील की है।

कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने पिछले महीने उनके नेतृत्व में पंजाब के विधायकों द्वारा जंतर मंतर पर अलॉट की गई जगह पर संकेतक धरना दिए जाने को याद करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसा ही कुछ किसानों के लिए भी किया जा सकता है जिससे वह अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आवाज़ बुलंद करने के साथ-साथ राष्ट्रीय मीडिया के साथ विचार साझे कर सकें।

मुख्यमंत्री ने कहा कि क्या बीते समय में भाजपा ने रामलीला मैदान में रोष रैलियाँ नहीं की थीं? क्या किसानों को अपनी राष्ट्रीय राजधानी में जाने और उनकी इच्छा मुताबिक खेती कानूनों के विरुद्ध आवाज़ उठाने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए? मुख्यमंत्री ने हरियाणा में एम.एल. खट्टर सरकार को राष्ट्रीय राजमार्ग से प्रदर्शनकारी किसानों को निकलने देने की आज्ञा देने की अपील की है जिससे वह दिल्ली में शांतमयी ढंग के साथ अपनी आवाज़ उठा सकें।

कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि किसानों ने किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया और न ही हिंसा में शामिल हुए और किसानों को रोकने की कोशिश लोकतंत्र के लिए अच्छी बात नहीं है। उन्होंने सावधान किया कि किसानों पर कार्यवाही से ख़ास कर हज़ारों नौजवानों द्वारा पलटवार किया जा सकता है जो प्रदर्शनकारी किसानों के साथ हैं। उन्होंने खट्टर की टिप्पणियों पर हैरानी ज़ाहिर की।

मुख्यमंत्री ने कहा कि एम.एल. खट्टर सरकार की कार्यवाहियां संवैधानिक भावना के खि़लाफ़ होने के साथ-साथ किसानों की बोलने की आज़ादी के भी खि़लाफ़ हैं। उन्होंने कहा कि या तो भारत में हमारे पास संविधान है या फिर नहीं और यदि हमारे पास है तो प्रत्येक व्यक्ति को बोलने, सोचने और कार्य करने की आज़ादी और हक है।

किसानों को रोकने के पीछे के मूल कारण पर सवाल उठाते हुए जो किसी भी हालत में आगे बढऩे के लिए बैरीकेड तोड़ रहे हैं, मुख्यमंत्री ने कहा कि शांतमयी ढंग के साथ विरोध कर रहे किसानों पर ज़ोरदार बल का प्रयोग पूरी तरह असंवैधानिक है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि जो किसान देश का पेट पालते हैं, उनको पीछे धकेलने की जगह उनके साथ खड़े होने की ज़रूरत है। उन्होंने जि़क्र किया कि उनकी सरकार ने पिछले दो महीनों से किसानों को बिना किसी हिंसा या कानून व्यवस्था सम्बन्धी मुश्किलों के शांतमयी ढंग के साथ विरोध प्रदर्शन करने की आज्ञा दी। उन्होंने कहा कि हमने किसान नेताओं को भरोसे में लिया और हरियाणा सरकार को भी ऐसा करना चाहिए।

हरियाणा पुलिस द्वारा बल प्रयोग बारे अपने पहले बयान के जवाब में खट्टर की टिप्पणी पर हैरानी ज़ाहिर करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह किसान हैं जिनको एमएसपी पर यकीन दिलाने की ज़रूरत है, न कि मुझे। कैप्टन अमरिन्दर ने कहा कि खट्टर अगर सोचते हैं कि वह किसानों को मना सकते हैं तो ‘दिल्ली चलो’ मार्च की शुरुआत से पहले उनको किसानों के साथ बातचीत करने की कोशिश करनी चाहिए थी।

हरियाणा के अपने हमरुतबा के दोषों को ख़ारिज करते हुए कि वह (कैप्टन अमरिन्दर) किसानों को विरोध प्रदर्शन के लिए उकसा रहे हैं, मुख्यमंत्री ने कहा कि फिर हरियाणा के किसान इस मामले में दिल्ली की तरफ कूच क्यों कर रहे हैं। उन्होंने इस बात से भी इन्कार किया कि उन्होंने खट्टर सरकार के साथ तालमेल नहीं किया और कहा कि बल्कि हरियाणा के मुख्यमंत्री ने उनके साथ संपर्क करने की कोशिश नहीं की। उन्होंने कहा कि जब मैं प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री के साथ किसानों के मुद्दे पर निरंतर बात कर रहा हूँ तो मैं उनके साथ बात क्यों नहीं करूँगा। उन्होंने आगे कहा कि आज भी उन्होंने पंजाब-हरियाणा सरहद पर बने हालात पर अमित शाह के साथ दो बार बातचीत की थी। कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि उन्होंने श्री शाह को इस बात से अवगत करवाया कि किसान नेता हिंसक नहीं हैं और जो छोटी झड़पें हुई हैं, वह हरियाणा पुलिस की कार्यवाहियों की प्रतिक्रिया थीं।

यह उम्मीद करते हुए कि किसान नेता 3 दिसंबर को केंद्र द्वारा बुलाई गई मीटिंग में जाएंगे, कैप्टन अमरिन्दर ने ज़ोर देकर कहा कि टकराव कोई हल नहीं है और दोनों पक्षों को मसले के हल के लिए बैठकर सुखद माहौल में बातचीत करनी होगी। उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की कि वह किसानों को एम.एस.पी. सम्बन्धी कानूनी /संवैधानिक भरोसा दें। यदि केंद्र खेती कानूनों में संशोधन नहीं करना चाहता तो इसको खाद्य सुरक्षा ऐक्ट में संशोधन करना चाहिए और इसको ए.पी.एम.सी. ऐक्ट में शामिल करना चाहिए।

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